8 Feb 2024
By अतुल कुशवाह
किश्वर नाहीद का जन्म 17 जून 1940 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. शायरी में उन्होंने महिलाओं के हालात पर ध्यान केंद्रित किया है.
Photo: social media/pexels
कभी तो आ मेरी आंखों की रोशनी बनकर जमीने खुश्क को सैराब कर नमी बनकर तुम्हें अजीज नहीं है तो हो अजीज किसे न मिल सकेगा कोई वजहे जिंदगी बनकर.
एक ही आवाज पर वापस पलट आएंगे लोग तुझको फिर अपने घरों में ढूंढ़ने जाएंगे लोग मुनहसिर रंगों की आतिश पर नहीं है दिलकशी मैले कपड़ों में भी तुझ को देखने आएंगे लोग.
हमने कहने को तुम्हें दिल से भुलाया हुआ है बस यही दाग है सीने में छुपाया हुआ है अब गिरेगी भी तो कैसे कि बहुत सब्र के साथ हम ने दीवार को हाथों से बनाया हुआ है.
कभी भुलाया नहीं याद भी किया नहीं है ये कैसा जुर्म है जिसमें कोई सजा नहीं है मैं बात बात पे रोने का माजरा पूछूं वो हंस रहा है बताने को कुछ रहा नहीं है.
दिल को भी गम का सलीका न था पहले पहले उस को भी भूलना अच्छा लगा पहले पहले पहले पहले वही अंदाज था दरिया जैसा पास आ आ के पलटता रहा पहले पहले.
उम्र में उससे बड़ी थी लेकिन पहले टूट के बिखरी मैं, साहिल साहिल जज्बे थे और दरिया दरिया पहुंची मैं लम्हा लम्हा जां पिघलेगी कतरा कतरा शब होगी, अपने हाथ लरजते देखे अपने आप ही संभली मैं.
हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूं मैं तुझसे मुखातिब हूं तेरा हाल भी पूछूं दिल में है मुलाकात की ख्वाहिश की दबी आग मेहंदी लगे हाथों को छुपाकर कहां रक्खूं.
संभल ही लेंगे मुसलसल तबाह हों तो सही अजाबे जीस्त में रश्के गुनाह हों तो सही कहीं तो साहिले नायाफ्त का निशां होगा जला के खुद को तकाजा ए आह हों तो सही. (अजाबे जीस्त-दुख, रश्के गुनाह-ईर्ष्या)