और फिर मानना पड़ता है खुदा है मुझमें... कृष्ण बिहारी नूर के चुनिंदा शेर

28 Oct 2023

By अतुल कुशवाह

मशहूर शायर कृष्ण बिहारी नूर का जन्म लखनऊ में 8 नवंबर 1925 को हुआ था. वे 17 साल की उम्र में शेर कहने लगे थे. उनकी शायरी में दर्शन, अध्यात्म और कलंदराना मिजाज देखने को मिलता है.

कृष्ण बिहारी नूर

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सहर के डूबते तारों गवाह रहना तुम कि मैंने आखिरी सांसों तक इंतजार किया यही नहीं कि हमीं इंतजार करते रहे कभी कभी तो उन्होंने भी इंतजार किया.

वो एक साया है अपना हो या पराया हो जनम जनम से बराबर मिरी तलाश में है मैं देवता की तरह कैद अपने मंदिर में वो मेरे जिस्म से बाहर मेरी तलाश में है.

कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिए आंखें जो बंद हों तो वो जल्वा दिखाई दे क्या हुस्न है जमाल है क्या रंग-रूप है वो भीड़ में भी जाए तो तन्हा दिखाई दे.

नजर मिला न सके उससे इस निगाह के बाद वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद जमीर कांप तो जाता है आप कुछ भी कहें वो हो गुनाह से पहले कि हो गुनाह के बाद.

आग है पानी है मिट्टी है हवा है मुझमें और फिर मानना पड़ता है खुदा है मुझमें. जितने मौसम हैं सभी जैसे कहीं मिल जाएं इन दिनों कैसे बताऊं जो फजा है मुझमें.

जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं इतने हिस्सों में बंट गया हूं मैं मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं.

किस तरह मैं देखूं भी बातें भी करूं तुमसे आंख अपना मजा चाहे दिल अपना मजा चाहे.

मैं तो गजल सुना के अकेला खड़ा रहा सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए.