28 Aug 2024
By अतुल कुशवाह
निधि गुप्ता 'कशिश' एक युवा कवयित्री और शायरा हैं. पेशे से इंजीनियर हैं. सिंगापुर में रहकर कई कंपनियों में काम कर चुकी हैं. देशभर में होने वाले कवि सम्मेलन मुशायरों में शिरकत करती हैं.
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सुहानी शाम है जाना, न इस दिल को यूं तड़पाना, कि देखो गा रही कोयल तुम्हारे नाम का गाना बदन बादल का पिघला है, ज़मीं मदमस्त नाची है, अगर हो हसरते उल्फ़त तो मेरे गांव आ जाना.
हदों से चलकर हदों पे जाना हदों से आगे लगा रहेगा, ये रस्मे ए उल्फ़त मेरी मुहब्बत ये बांकपन भी खिला रहेगा प्रथम प्रेम का वो एक चुम्बन जो तुमने आरिज़ पे दे दिया था, सुरूर उसका खुमार उसका शबाब उसका चढ़ा रहेगा.
जो हृदय में बसे ऐसी सूरत बनो विश्व में प्रेम की ऐसी मूरत बनो ये बदन कल को माटी में मिल जाएगा तन से हो, मन से तुम खूबसूरत बनो.
इश्क़ की आग में हम तड़पते रहे तब भी आंखों में उनकी खटकते रहे दर्द सीने में घुट घुट के मरता रहा फिर भी धड़कन में वो ही धड़कते रहे.
ज़र्रे से आसमान का बादल बना दिया तूने तो मुझको प्यार में पागल बना दिया हर सुब्ह मेरी शाम के रंगों में ढल गई शामों को मेरी रात का काजल बना दिया.
किसी के इश्क़ की दौलत जो कमाई हमने फिर उसके बाद कोई चीज़ न मांगी हमने हर एक तंज हर इल्ज़ाम हमारे सर है ख़ता यही कि कभी बात न काटी हमने.
न जाने कौन सा किस्सा पुराना दिल में जा बैठा भटकते ही भटकते वो मेरे पहलू में आ बैठा मैं थी इक राह का पत्थर न कोई क़द्र थी मेरी मग़र उसने तराशा यूं मुझे मूरत बना बैठा.
पीपला की छांव में बैठे रहे जब बांह भींचे दो नयन की कोर ने तब नेह के अनुबंध सींचे कांपते अधरों की तृष्णा स्मिता की चांदनी से आइना बनकर हृदय पर मैं तेरे दर्पण लिखूंगी.