ये कौन छिप गया है सितारे उछालकर... आदिल मंसूरी के चुनिंदा शेर

30 Dec 2023

By अतुल कुशवाह

शायर आदिल मंसूरी का जन्म 18 मई 1936 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था. वे शायर होने के साथ नाटककार भी थे. उन्होंने उर्दू के साथ ही गुजराती व हिंदी में भी लिखा.

शायर आदिल मंसूरी

Photo: social media/pexels

फिर किसी ख्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊं फिर किसी याद की तलवार से मारा जाऊं खुश्क खोए हुए गुमनाम जजीरे की तरह दर्द के काले समुंदर से उभारा जाऊं.

पहलू के आर-पार गुजरता हुआ सा हो इक शख्स आइने में उतरता हुआ सा हो फिर बाद में वो कत्ल भी कर दे तो हर्ज क्या लेकिन वो पहले प्यार भी करता हुआ सा हो.

हर ख्वाब काली रात के सांचे में ढालकर ये कौन छिप गया है सितारे उछालकर ऐसे डरे हुए हैं जमाने की चाल से घर में भी पांव रखते हैं हम तो संभालकर.

दरवाजा बंद देख के मेरे मकान का झोंका हवा का खिड़की के पर्दे हिला गया वो जाने नौ बहार जिधर से गुजर गया पेड़ों ने फूल पत्तों से रस्ता छिपा लिया.

होने को यूं तो शहर में अपना मकान था नफरत का रेगजार मगर दरमियान था लम्हे के टूटने की सदा सुन रहा था मैं झपकी जो आंख सर पे नया आसमान था.

भूलकर भी न फिर मिलेगा तू जानता हूं यही करेगा तू मैंने आंखों से जेब भर ली है देखता हूं कहां छिपेगा तू.

बदन पर नई फस्ल आने लगी हवा दिल में ख्वाहिश जगाने लगी जो चुपचाप रहती थी दीवार पर वो तस्वीर बातें बनाने लगी.

एक कतरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया एक मुश्ते खाक जो बिखरी तो सहरा कर दिया मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देखकर उसने दीवारों को अपनी और ऊंचा कर दिया.