21 Feb 2024
By अतुल कुशवाह
इफ्तिखार आरिफ का मूल नाम इफ्तिखार हुसैन आरिफ है. उनका जन्म 21 मार्च 1943 को लखनऊ में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया.
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ये बस्ती जानी पहचानी बहुत है यहां वादों की अर्जानी बहुत है शगुफ्ता लफ्ज लिखे जा रहे हैं मगर लहजों में वीरानी बहुत है.
जरा सी देर को आए थे ख्वाब आंखों में फिर उसके बाद मुसलसल अजाब आंखों में अजब तरह का है मौसम कि खाक उड़ती है वो दिन भी थे कि खिले थे गुलाब आंखों में.
थकन तो अगले सफर के लिए बहाना था उसे तो यूं भी किसी और सम्त जाना था वही चराग बुझा जिसकी लौ कयामत थी उसी पे जर्ब पड़ी जो शजर पुराना था.
सितारों से भरा ये आसमां कैसा लगेगा हमारे बाद तुमको ये जहां कैसा लगेगा थके हारे हुए सूरज की भीगी रोशनी में हवाओं से उलझता बादबां कैसा लगेगा. (बादबां- नाव या जहाज में लगाया जाने वाला पर्दा)
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में अजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में ये वक्त किसकी रऊनत पे खाक डाल गया ये कौन बोल रहा था खुदा के लहजे में. (रऊनत- अहंकार)
अजाब ये भी किसी और पर नहीं आया कि एक उम्र चले और घर नहीं आया उस एक ख्वाब की हसरत में जल बुझीं आंखें वो एक ख्वाब कि अब तक नजर नहीं आया.
मेरे खुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे मैं जिस मकान में रहता हूं उसको घर कर दे मैं जिंदगी की दुआ मांगने लगा हूं बहुत जो हो सके तो दुआओं को बेअसर कर दे.
खुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं, फिर भी लोग खुदाओं जैसी बातें करते हैं एक जरा सी जोत के बल पर अंधियारों से बैर, पागल दिए हवाओं जैसी बातें करते हैं.