द्वापर काल के इस सूर्य मंदिर में छठ पूजा का है महत्व, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं...
द्वापर काल के इस सूर्य मंदिर में छठ पूजा का है महत्व, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं...
By: aajtak.in
नालंदा के बड़गांव में छठ व्रत शुरु होने की कई कहानियां हैं. यहां का सूर्य मंदिर द्वापर कालीन युग का है. मान्यता है कि इसी मंदिर से छठ पर्व की शुरुआत हुई थी.
बिहारशरीफ से 10 किमी दूर बड़गांव में मंदिर बना है. कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शांब को कुष्ठ रोग हो गया था. उन्होंने मंदिर के पास सरोवर में स्नान कर सूर्य उपासना की थी.
इसके बाद शांब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी. कहा जाता है द्वापरकाल में जब भगवान कृष्ण पांडवों के साथ राजगीर पहुंचे थे, तो उन्होंने बड़गांव में सूर्य देव की आराधना की थी.
एक बार महर्षि दुर्वाशा भगवान कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका गए थे. रुक्मणी के साथ श्रीकृष्ण विहार कर रहे थे. महर्षि दुर्वाशा को देखकर राजा शांब को किसी बात पर हंसी आ गई.
इसके बाद उन्होंने राजा शांब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया था. तब श्रीकृष्ण ने शांब को रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना और सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी.
श्रीकृष्ण की सलाह पर राजा शांब सूर्य राशि की खोज में भटकते-भटकते राजगीर पहुंचे. इस दौरान उनको जोर की प्यास लगी. उन्होंने अपने सेवक को पानी लाने का आदेश दिया.
जंगल में काफी तलाश के बाद सेवक को एक गड्ढे में थोड़ा सा जल मिला. मगर, वह काफी गंदा था. शांब ने उस पानी से हाथ-पैर धोकर उस जल को पी लिया.
जल का सेवन करते ही राजा शांब का कुष्ठ रोग ठीक होने लगा. इसके बाद राजा ने 49 दिनों तक राजगीर में रहकर सूर्य उपासना और अर्घ्य दिया.
तभी से यहां पर छठ का त्योहार मनाने के लिए देश के कई जगहों से भक्त आते हैं. महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं और फल-फूल अर्पित करती हैं.
कई भक्त अपनी मनौती पूरी होने के बाद मंदिर तक दंडवत प्रणाम करते हुए जाते हैं. सूर्य देव की आराधना और कृपा से भक्तों के दुख दूर होते हैं.