मीर तकी मीर का मूल नाम मोहम्मद तकी था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. वे सबसे बड़े शायर थे. उनकी गजलों में इंसान के दुख दर्द की दास्तान दिखाई देती है.
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शेर के पर्दे में मैं ने गम सुनाया है बहुत मरसिए ने दिल के मेरे भी रुलाया है बहुत बेसबब आता नहीं अब दम ब दम आशिक को गश दर्द खींचा है निहायत रंज उठाया है बहुत.
आह जिस वक्त सर उठाती है अर्श पर बर्छियां चलाती है नाज बरदारे लब है जां जब से तेरे खत की खबर को पाती है.
अश्क आंखों में कब नहीं आता लोहू आता है जब नहीं आता होश जाता नहीं रहा लेकिन जब वो आता है तब नहीं आता.
हस्ती अपनी हबाब की सी है ये नुमाइश सराब की सी है नाजुकी उसके लब की क्या कहिए पंखुड़ी इक गुलाब की सी है.
गुस्से से उठ चले हो तो दामन को झाड़कर जाते रहेंगे हम भी गरेबान फाड़कर दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़कर.
कुछ करो फिक्र मुझ दिवाने की धूम है फिर बहार आने की वो जो फिरता है मुझसे दूर ही दूर है ये तकरीब जी के जाने की.
इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ छोड़ा वफा को उन ने मुरव्वत को क्या हुआ उसके गए पर ऐसे गए दिल से हमनशीं मालूम भी हुआ न कि ताकत को क्या हुआ.
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने है, रखनों से दीवारे चमन के मुंह को ले है छुपा यानी, इन सूराखों के टुक रहने को सौ का नजारा जाने है.