जाने माने शायर मुनव्वर राना का मूल नाम सय्यद मुनव्वर अली है. उनका जन्म 1 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था. मुनव्वर राना ने 'मां' पर जो गजलें लिखीं, वे बेहद मशहूर हुईं.
भुला पाना बहुत मुश्किल है सबकुछ याद रहता है मोहब्बत करने वाला इसलिए बरबाद रहता है अगर सोने के पिंजरे में भी रहता है तो कैदी है परिंदा तो वही होता है जो आजाद रहता है.
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं जैसे बच्चे भरे बाजार में खो जाते हैं मुस्तकिल जूझना यादों से बहुत मुश्किल है रफ्ता रफ्ता सभी घर बार में खो जाते हैं.
जिंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी और पत्तों को बहरहाल बिखर जाना है एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है.
जो हुक्म देता है वो इल्तिजा भी करता है ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है तू बेवफा है तो एक बुरी खबर सुन ले कि इंतजार मेरा दूसरा भी करता है.
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए जिंदगी तू कब तलक दर दर फिराएगी हमें टूटा फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई कभी ऐ खुश नसीबी मेरे घर का रुख भी कर लेती इधर पहुंची उधर पहुंची यहां आई वहां आई.
तुम्हारे जिस्म की खुशबू गुलों से आती है खबर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है इसीलिए तो अंधेरे हसीन लगते हैं कि रात मिलके तेरे गेसुओं से आती है.
तू मेरे साथ अगर है तो अंधेरा कैसा रात खुद चांद सितारों से जड़ी लगती है मैं रहूं या न रहूं नाम रहेगा मेरा जिंदगी उम्र में कुछ मुझ से बड़ी लगती है.