मशहूर शायर राजेश रेड्डी का जन्म 22 जुलाई 1952 में महाराष्ट्र में हुआ. उनकी शायरी सामाजिक सच को उजागर करती हैं और इंसान की जिंदगी की हकीकत बयां करती हैं.
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शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं.
जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये जमीं अब तो बस आसमान बाकी है.
यहां हर शख्श हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है.
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा बड़ों की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है.
दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं.
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिए कुछ को लेकिन आसमानों के खजाने चाहिए.
सफर में अब के अजब तजरबा निकल आया भटक गया तो नया रास्ता निकल आया.
मेरी इक जिंदगी के कितने हिस्सेदार हैं लेकिन किसी की जिंदगी में मेरा हिस्सा क्यों नहीं होता.