मोहम्मद रफी सौदा का मूल नाम मिर्जा मोहम्मद रफी सौदा था. उनका जन्म दिल्ली में हुआ था. उन्हें 18वीं सदी के बड़े शायरों में शुमार किया जाता है. वे मीर तकी मीर के समकालीन शायर हैं.
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जब यार ने उठाकर जुल्फों के बाल बांधे तब मैंने अपने दिल में लाखों खयाल बांधे मारोगे किसको जी से किस पर कमर कसी है फिरते हो क्यों प्यारे तलवार ढाल बांधे.
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियां हैं अब देखने को जिनके आंखें तरसतियां हैं आया था क्यों अदम में क्या कर चला जहां में ये मर्गो जीस्त तुझ बिन आपस में हंसतियां हैं. (मर्गो जीस्त- मृत्यु)
आशिक की भी कटती हैं क्या खूब तरह रातें दो-चार घड़ी रोना दो-चार घड़ी बातें कुर्बां हूं मुझे जिस दम याद आती हैं वो बातें क्या दिन वो मुबारक थे क्या खूब थीं वो रातें.
दिल मत टपक नजर से कि पाया न जाएगा ज्यों अश्क फिर जमीं से उठाया न जाएगा रुख्सत है बागबां कि तनिक देख लें चमन जाते हैं वां जहां से फिर आया न जाएगा.
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया इस दिल को क्या कहूं कि दिवाने ने क्या किया चाहूं मैं किस तरह ये जमाने की दोस्ती औरों से दोस्त हो के जमाने ने क्या किया.
दिल में तेरे जो कोई घर कर गया सख्त मुहिम थी कि वो सर कर गया वहमे गलत कार ने दिल खुश किया किसपे न जाने वो नजर कर गया.
धूम से सुनते हैं अबकी साल आती है बहार देखिए क्या कुछ हमारे सर पे लाती है बहार शायद अज्मे यार की गुलशन में पहुंची है खबर गिल के पैराहन में फूली नईं समाती है बहार.
देखे बुलबुल जो यार की सूरत फिर न देखे बहार की सूरत बर्क देखी हो जिसने सो जाने मुझ दिले बेकरार की सूरत.