सवाल सारे गलत थे जवाब क्या देते... शायर मुनीर नियाजी के चुनिंदा शेर

11 Jan 2023

By अतुल कुशवाह

मुनीर नियाजी का मूल नाम मोहम्मद मुनीर खान था. उनका जन्म 19 अप्रैल 1928 को होशियारपुर पंजाब में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया.

शायर मुनीर नियाजी

Photo: Facebook/pexels

हमेशा देर कर देता हूं मैं हर काम करने में जरूरी बात कहनी हो कोई वादा निभाना हो उसे आवाज देनी हो उसे वापस बुलाना हो मदद करनी हो उसकी यार की ढारस बंधाना हो बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो हमेशा देर कर देता हूं मैं.

रात इतनी जा चुकी है और सोना है अभी इस नगर में इक खुशी का खवाब बोना है अभी ऐसी यादों में घिरे हैं जिनसे कुछ हासिल नहीं और कितना वक्त उन यादों में खोना है अभी.

है शक्ल तेरी गुलाब जैसी नजर है तेरी शराब जैसी हवा सहर की है इन दिनों में बदलते मौसम के ख्वाब जैसी.

बैठ जाता है वो जब महफिल में आ के सामने मैं ही बस होता हूं उसकी इस अदा के सामने तेज थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने.

थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूं मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूं कभी दिल में उदासी हो तो उनमें जा निकलता हूं पुराने दोस्तों को चुप से बैठे देख लेता हूं.

किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते सवाल सारे गलत थे जवाब क्या देते हवा की तरह मुसाफिर थे दिलबरों के दिल उन्हें बस एक ही घर का अजाब क्या देते.

जिंदा रहें तो क्या है जो मर जाएं हम तो क्या दुनिया से खामोशी से गुजर जाएं हम तो क्या हस्ती ही अपनी क्या है जमाने के सामने इक ख्वाब हैं जहां में बिखर जाएं हम तो क्या.

आ गई याद शाम ढलते ही बुझ गया दिल चराग जलते ही खुल गए शहरे गम के दरवाजे इक जरा सी हवा के चलते ही.