अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ... निजाम रामपुरी के चुनिंदा शेर

17 Feb 2024

By अतुल कुशवाह

निजाम रामपुरी का मूल नाम जकरया शाह था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ था. वे सूफी मिजाज के शायर थे. वे अपनी शायरी में माशूक से बातें करते हैं और जिसमें शोखी नुमायां है.

शायर निजाम रामपुरी

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दिल में क्या उसको मिला जान से हम देखते हैं बल्कि जां है वही जब ध्यान से हम देखते हैं दिल निकल जाता है बेसाख्ता उस दम अपना दर में जिस दम तुझे दालान से हम देखते हैं.

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ देखा जो मुझको छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ ये भी नया सितम है हिना तो लगाएं गैर और उसकी दाद चाहें वो मुझको दिखा के हाथ.

नहीं सूझता कोई चारा मुझे तुम्हारी जुदाई ने मारा मुझे यूं ही रोज आने को कहते हो तुम नहीं एतबार अब तुम्हारा मुझे.

बिगड़ने से तुम्हारे क्या कहूं मैं क्या बिगड़ता है कलेजा मुंह को आ जाता है दिल ऐसा बिगड़ता है हमारे उठके जाने में तेरी क्या बात बनती है हमारे यां के रहने में तेरा क्या क्या बिगड़ता है.

तुमसे कुछ कहने को था भूल गया हाय क्या बात थी क्या भूल गया दिल में बैठा है ये खौफ उस बुत का हाथ उट्ठे कि दुआ भूल गया.

उससे फिर क्या गिला करे कोई जो कहे सुन के क्या करे कोई हम भी क्या क्या कहें खुदा जाने गर हमारी सुना करे कोई.

वो ऐसे बिगड़े हुए हैं कई महीने से कि जां पे बन गई तंग आ गया मैं जीने से वो नीची नीची निगाहों से देखना मुझको वो प्यार तकिए को करना लगा के सीने से.

गले में डालकर बांहें वो लब से लब मिला देना फिर अपने हाथ से सागर पिलाना याद आता है बदलना करवट और तकिया मिरे पहलू में रख देना वो सोना आप और मेरा जगाना याद आता है.