डर लगा इश्क के सूरज को निकलते हुए भी... पीरजादा कासिम के चुनिंदा शेर

7 Jan 2023

By अतुल कुशवाह

पीरजादा कासिम का मूल नाम पीरजादा कासिम रजा सिद्दीकी था. उनका जन्म 8 फरवरी 1943 कराची पाकिस्तान में हुआ था. उनकी शायरी में सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर व्यंग्य किया गया है.

शायर पीरजादा कासिम

Photo: Social media/pexels

बेदिली से हंसने को खुशदिली न समझा जाए गम से जलते चेहरों को रोशनी न समझा जाए हम तो बस ये कहते हैं रोज जीने मरने को आप चाहें कुछ समझें जिंदगी न समझा जाए.

दिल के बहलाने को उम्मीदे करम रखते हैं वर्ना ये हम भी समझते हैं कि ऐसा क्यों हो दश्त जो मेरी तमन्ना न करे दश्त नहीं खाक जिसमें न उड़े मेरी वो सहरा क्यों हो.

लड़खड़ाते हुए भी और संभलते हुए भी उसके दर पर ही गए ख्वाब में चलते हुए भी बिन तेरे ऐसा अंधेरा था मेरे अंदर यार डर लगा इश्क के सूरज को निकलते हुए भी.

चांद भी बुझा डाला दिल दुखाने वालों ने कुछ उठा नहीं रखा दिल दुखाने वालों ने सच कहा सदा दिल को दिल से राह होती है खूब हमको पहचाना दिल दुखाने वालों ने.

दर्द है कि नगमा है फैसला किया जाए यानी दिल की धड़कन पर गौर कर लिया जाए बेहिसी की दुनिया से दो सवाल मेरे भी कब तलक जिया जाए और क्यों जिया जाए.

उसकी ख्वाहिश है कि अब लोग न रोएं न हंसें बेहिसी वक्त की आवाज बना दी जाए सिर्फ सूरज का निकलना है अगर सुबह तो फिर एक शब और मेरी शब से मिला दी जाए.

अगर चलो तो मेरे साथ ही चलो लेकिन कठिन सफर से ज्यादा है हमसफर होना उदास उदास ये दीवारो दर बताते हैं कि जैसे रास न हो उनको मेरा घर होना.

हमारी तरह कोई दूसरा हुआ भी नहीं वो दर्द दिल में रखा है जो ला-दवा भी नहीं मैं ऐसे शख्स को जिंदों में क्या शुमार करूं जो सोचता भी नहीं ख्वाब देखता भी नहीं.