मशहूर शायर राहत इंदौरी की शायरी पूरी दुनिया में साहित्य प्रेमियों तक पहुंची. उन्होंने मुश्किल से मुश्किल बात को भी अपने शेरों में आसानी से कहा है.
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यूं हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं.
वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूं मैं सितारों आओ मिरी राह में बिखर जाओ ये मेरा हुक्म है हालांकि कुछ नहीं हूं मैं.
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूं इक न इक रोज कहीं ढूंढ़ ही लूंगा तुझको ठोकरें जहर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूं.
बुलाती है मगर जाने का नइं वो दुनिया है उधर जाने का नइं मेरे बेटे किसी से इश्क कर मगर हद से गुजर जाने का नइं.
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं सब अपने चेहरों पर दोहरी नकाब रखते हैं हमें चराग समझकर बुझा न पाओगे हम अपने घर में कई आफताब रखते हैं.
नए किरदार आते जा रहे हैं मगर नाटक पुराना चल रहा है वही दुनिया वही सांसें वही हम वही सब कुछ पुराना चल रहा है.
दिन ढल गया तो रात गुजरने की आस में सूरज नदी में डूब गया हम गिलास में.
ये आने वाले जमानों के काम आएंगे कहीं छिपा के मेरे तजरबात रख देना मैं एक सच हूं अगर सुन सको तो सुनते रहो गलत कहूं तो मेरे मुंह पे हाथ रख देना.