शारिक कैफी का मूल नाम सय्यद शारिक हुसैन है. उनका जन्म 2 नवंबर 1961 को उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ था. शारिक कैफी की शायरी युवाओं के बीच काफी फेमस है.
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ख्वाब वैसे तो इक इनायत है आंख खुल जाए तो मुसीबत है जिस्म आया किसी के हिस्से में दिल किसी और की अमानत है.
हमीं तक रह गया किस्सा हमारा किसी ने खत नहीं खोला हमारा पढ़ाई चल रही है जिंदगी की अभी उतरा नहीं बस्ता हमारा.
आइने का साथ प्यारा था कभी एक चेहरे पर गुजारा था कभी कैसे टुकड़ों में उसे कर लूं कबूल जो मेरा सारे का सारा था कभी.
मौत ने सारी रात हमारी नब्ज टटोली ऐसा मरने का माहौल बनाया हमने घर से निकले चौक गए फिर पार्क में बैठे तन्हाई को जगह जगह बिखराया हमने.
तेरी तरह नहीं आसान वापसी मेरी मैं रास्तों को समझता हुआ नहीं आया चुनी वो बस कि ज्यादा थीं लड़कियां जिसमें बिछड़के तुझसे मैं रोता हुआ नहीं आया.
मुझे महफिल के बाहर का न जानो मैं अपना जाम खाली कर चुका हूं ये आदत भी उसी की दी हुई है कि सब को मुस्कुरा कर देखता हूं.
सफर हालांकि तेरे साथ अच्छा चल रहा है बराबर से मगर एक और रस्ता चल रहा है.
जवां लोगों की महफिल में कहां ले आए मुझको जिधर देखो उधर कोई इशारा चल रहा है गलत क्या है जो मेरे हाल पर हंसती है दुनिया बुढ़ापा आ गया और इश्क पहला चल रहा है.