जफर इकबाल का मूल नाम मियां जफर इकबाल था. उनका जन्म 27 सितंबर 1933 को पंजाब के ओकाड़ा में हुआ था. उनकी शायरी को लोग बेहद पसंद करते हैं.
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इतना ठहरा हुआ माहौल बदलना पड़ जाए बाहर अपने ही किनारों से उछलना पड़ जाए क्या खबर जिसका यहां इतना उड़ाते हैं मजाक खुद हमें भी कभी इस रंग में ढलना पड़ जाए.
आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ जिंदा रह सकता हूं ऐसी ही खुश इम्कानी के साथ तुम ही बतलाओ कि उसकी कद्र क्या होगी तुम्हें जो मोहब्बत मुफ्त में मिल जाए आसानी के साथ.
जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता मैं हमेशा तो मोहब्बत में नहीं रह सकता कोई खतरा है मुझे और तरह का ऐ दोस्त मैं जो अब तेरी हिफाजत में नहीं रह सकता.
थकना भी लाजिमी था कुछ काम करते करते कुछ और थक गया हू आराम करते करते अंदर सब आ गया है बाहर का भी अंधेरा खुद रात हो गया हूं मैं शाम करते करते.
बस एक बार किसी ने गले लगाया था फिर उस के बाद न मैं था न मेरा साया था उस एक दश्त में सौ शहर हो गए आबाद जहां किसी ने कभी कारवां लुटाया था.
नहीं कि तेरे इशारे नहीं समझता हूं समझ तो लेता हूं सारे नहीं समझता हूं तेरा चढ़ा हुआ दरिया समझ में आता है तेरे खामोश किनारे नहीं समझता हूं.
यकसू भी लग रहा हूं बिखरने के बावजूद पूरी तरह मरा नहीं मरने के बावजूद इक धूप सी तनी हुई बादल के आर पार इक प्यास है रुकी हुई झरने के बावजूद.
अभी तो करना पड़ेगा सफर दोबारा मुझे अभी करें नहीं आराम का इशारा मुझे उतार फेंकता मैं भी ये तार तार बदन असीरे खाक हूं करना पड़ा गुजारा मुझे.