यहां होती है जूतामार होली, क्या है ये 300 साल पुरानी परंपरा?

12 Mar 2025

रिपोर्ट: विनय पांडेय

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यूपी के शाहजहांपुर में अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसे ‘जूते मार होली’ कहा जाता है. यह परंपरा 300 वर्षों से चली आ रही है. यहां एक पुतले को भैंसगाड़ी पर घुमाया जाता है, लोग उसे जूते-चप्पलों से मारते हैं.

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शाहजहांपुर की होली सिर्फ रंगों की नहीं, बल्कि जूते-चप्पलों की भी होती है. लाट साहब के पुतले को भैंसगाड़ी पर रखकर करीब 10 KM लंबा जुलूस निकाला जाता है.

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कहा जाता है कि ‘लाट साहब’ ब्रिटिश अफसरों का प्रतीक हैं, जिनके खिलाफ यह विरोध प्रकट किया जाता है. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की भावना से यह अनोखी परंपरा शुरू हुई थी.

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इस परंपरा की शुरुआत 300 साल पहले हुई थी, जब भारत में अंग्रेजों का शासन था. यह जुलूस ब्रिटिश हुकूमत के प्रति विरोध का प्रतीक माना जाता है.

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शाहजहांपुर में 67 से अधिक मस्जिदें हैं, जो जुलूस के रास्ते में आती हैं. होली से एक हफ्ते पहले प्रशासन मस्जिदों को तिरपाल से ढक देता है. मुस्लिम समुदाय भी इस फैसले का समर्थन करता है.

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पुलिस और प्रशासन ड्रोन कैमरों से निगरानी करता है. खुफिया विभाग की टीमें सादी वर्दी में जुलूस पर नजर रखती हैं. मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ पीस मीटिंग कर सहमति ली जाती है.

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शाहजहांपुर में वर्षों पुरानी यह परंपरा सभी लोगों की सहमति से निभाई जाती है.

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लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते जुलूस में शामिल होते हैं. लाट साहब की झांकी के पीछे हजारों की भीड़ उमड़ती है. जैसे ही भैंसगाड़ी आगे बढ़ती है, लोग जूते-चप्पल फेंककर होली खेलते हैं.

शाहजहांपुर की जूते मार होली भारत की सबसे अनोखी होलियों में से एक है, जो इतिहास, परंपरा और सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक बनी हुई है. 

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