दाग देहलवी का मूल नाम नवाब मिर्जा खां था. उनका जन्म 25 मई 1831 को दिल्ली में हुआ था. शायरी के प्रति उनका लगाव शुरू से ही थी. बाद में वे आला शायर हुए.
तुम्हारे खत में नया इक सलाम किसका था न था रकीब तो आखिर वो नाम किसका था.
वो कत्ल करके मुझे हर किसी से पूछते हैं ये काम किसने किया है ये काम किसका था.
आपका एतबार कौन करे रोज का इंतजार कौन करे 'दाग' की शक्ल देखकर बोले ऐसी सूरत को प्यार कौन करे.
क्या कहा फिर तो कहो हम नहीं सुनते तेरी नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं.
खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं.
गजब किया तेरे वादे पे एतबार किया तमाम रात कयामत का इंतजार किया गजब थी कसरत ए महफिल कि मैंने धोखे में हजार बार रकीबों को हम किनार किया.
फलक देता है जिनको ऐश उनको गम भी होते हैं जहां बजते हैं नक्कारे वहीं मातम भी होते हैं गिले शिकवे कहां तक होंगे आधी रात तो गुजरी परेशां तुम भी होते हो परेशां हम भी होते हैं.
दिल को क्या हो गया खुदा जाने क्यों है ऐसा उदास क्या जाने जानते जानते ही जानेगा मुझमें क्या है अभी वो क्या जाने.