शायर हसरत मोहानी का मूल नाम सय्यद फजलुल हसन था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में 1 जनवरी 1875 को हुआ था. आज भी उनकी लिखी गजलें और शायरी लोकप्रिय हैं.
आपने कद्र कुछ न की दिल की उड़ गई मुफ्त में हंसी दिल की मर मिटे हम न हो सकी पूरी आरजू तुमसे एक भी दिल की.
वो चुप हो गए मुझसे क्या कहते कहते कि दिल रह गया मुद्दआ कहते कहते मेरा इश्क भी खुद गरज हो चला है तेरे हुस्न को बेवफा कहते कहते.
भुलाता लाख हूं लेकिन बराबर याद आते हैं इलाही तर्क ए उल्फत पर वो क्यूंकर याद आते हैं नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं.
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है गैर की नजरों से बचकर सबकी मर्जी के खिलाफ वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है.
दर्दे दिल की उन्हें खबर न हुई कोई तदबीर कारगर न हुई कोशिशें हमने कीं हजार मगर इश्क में एक मोतबर न हुई.
रोग दिल को लगा गईं आंखें एक तमाशा दिखा गईं आंखें उसने देखा था किस नजर से मुझे दिल में गोया समा गईं आंखें.
और तो पास मेरे हिज्र में क्या रखा है एक तेरे दर्द को पहलू में छुपा रखा है तुमने बाल अपने जो फूलों में बसा रखे हैं शौक को और भी दीवाना बना रखा है.
देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना शेवा ए इश्क नहीं हुस्न को रुस्वा करना शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी दिन हो या रात हमें जिक्र उन्हीं का करना.