2 Feb 2024
By अतुल कुशवाह
शायरा अजरा परवीन का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. उनकी शायरी में समाज में महिलाओं के स्थान और सामाजिक मुद्दों पर बात की गई है.
Photo: Social Media/Pexels
सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी बिफर के मेरी लहर लहर अंगारा थी मैं धरती हूं उसे यही बस याद रहा भूल गया मैं और भी इक सय्यारा थी. (सय्यारा- घूमते रहने वाला तारा)
आसमां साहिल समंदर और मैं खुलता फिर यादों का दफ्तर और मैं चार सम्तें आईना सी हर तरफ तुमको खो देने का मंजर और मैं.
बे-खुदा होने के डर में बेसबब रोता रहा दिल के चौथे आसमां पर कौन शब रोता रहा जाते जाते फिर दिसंबर ने कहा कुछ मांग ले खाली आंखों से मगर दिल बेतलब रोता रहा.
मैं बचना चाहती हूं अपनी जां से मिरी मुझ से मोहब्बत बढ़ गई है नशा सूरज को हो जाए तो क्या हो मेरी हैरत पे हैरत बढ़ गई है.
मैं तो पागल हूं मेरी आंख के आंसू पे न जा इश्क बस ख्वाब है इस ख्वाब के जादू पे न जा मैं तेरा रक्स हूं इस रक्स को पूरा कर ले थक के यूं टूट के गिरते हुए घुंघरू पे न जा.
अब अपनी चीख भी क्या अपनी बेजबानी क्या महज असीरों की महसूर जिंदगानी क्या हजार करवटें झंकार ही सुनाती हैं यूं झटपटाने से जंजीर होगी पानी क्या (महसूर- घिरा हुआ)
बहरे चराग खुद को जलाने वाली मैं धुएं में अपने कर्ब छुपाने वाली मैं हरियाली दरकार उड़ानें भी प्यारी किधर चली मैं किधर थी जाने वाली मैं.
उसने मेरे नाम सूरज चांद तारे लिख दिया मेरा दिल मिट्टी पे रख अपने लब रोता रहा.