6 Feb 2025
By अतुल कुशवाह
चाहत जब अल्फाज़ मांगती है, तो शायरी उसकी सबसे खूबसूरत जुबान बन जाती है. इस मौके पर आप रोमांस से भरे ये शेर भेज सकते हैं. इन हसीन लफ्ज़ों के जरिए अपने जज्बातों को बयां कर सकते हैं.
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आप कहिए तो निभाते चले जाएंगे मगर इस तअल्लुक में अजीय्यत के सिवा कुछ भी नहीं मैं किसी तरह भी समझौता नहीं कर सकता या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं. (जव्वाद शेख)
परिंदे झील पर इक रब्ते रूहानी में आए हैं किसी बिछड़े हुए मौसम की हैरानी में आए हैं कई साहिल यहां डूबे हैं और गिर्दाब टूटे हैं कई तूफान इस ठहरे हुए पानी में आए हैं. (अज़ीज़ नबील)
लम्हा भर के लिए बैठा जो कभी छांवों में धूप चुभती ही रही फिर भी मेरे पांवों में आपने मुझको डुबोया है किसी और जगह इतनी गहराई कहां होती है दरियाओं में. (तहजीब हाफी)
मुझे गले से लगा मुझमें रोशनी कर दे मैं पेड़ हूं मेरी शाखें हरी भरी कर दे उस एक शख्स के पाबंद हैं जमाने भी अगर वो चाहे तो लम्हे को भी सदी कर दे. (तहजीब हाफी)
तू समझता है तेरा हिज्र गवारा करके बैठ जाऊंगा मोहब्बत से किनारा करके करना हो तर्के ताल्लुक तो कुछ ऐसे करना हमको तकलीफ न हो जिक्र तुम्हारा करके. (अब्बास ताबिश)
तू नहीं दिल में मगर तेरा निशां बाकी है बुझ गई आग मुहब्बत की धुआं बाकी है जिस जगह हमने कलेंडर में जुदाई लिखी इक मुलाकात की तारीख वहां बाकी है. (शकील आजमी)
वो जो इक शख्स मुझे ताना-ए-जां देता है मरने लगता हूं तो मरने भी कहां देता है तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझको कबूल ये सहूलत तो मुझे सारा जहां देता है. (अजहर फराग)
मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह मुझे संभालने वाला कहां से आएगा मैं गिर रहा हूं पुरानी इमारतों की तरह. (मुनव्वर राना)