मशहूर शायर वसीम बरेलवी का मूल नाम जाहिद हसन है. उनका जन्म 8 फरवरी 1940 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुआ. वसीम बरेलवी की शायरी अदब की दुनिया में काफी पढ़ी और सुनी जाती है.
अपने हर हर लफ्ज का खुद आइना हो जाऊंगा उसको छोटा कहके मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा तुम गिराने में लगे थे तुमने सोचा ही नहीं मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊंगा.
आते आते मेरा नाम सा रह गया उसके होंठों पे कुछ कांपता रह गया झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए और मैं था कि सच बोलता रह गया.
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएं कैसे.
मोहब्बत नासमझ होती है समझाना जरूरी है जो दिल में है उसे आंखों से कहलाना जरूरी है मेरे होठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना जरूरी है.
क्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकता आंसू की तरह आंख तक आ भी नहीं सकता तू छोड़ रहा है तो खता इसमें तेरी क्या हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता.
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊंगा कोई चराग नहीं हूं कि फिर जला लेगा.
कुछ इतना खौफ का मारा हुआ भी प्यार न हो वो एतबार दिलाए और एतबार न हो मैं गांव लौट रहा हूं बहुत दिनों के बाद खुदा करे कि उसे मेरा इंतजार न हो.
शाम तक सुबह की नजरों से उतर जाते हैं इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं इक जुदाई का वो लम्हा कि जो मरता ही नहीं लोग कहते थे कि सब वक्त गुजर जाते हैं.