28 Jan 2024
By अतुल कुशवाह
शायरा अजमत अब्दुल कय्यूम खां का जन्म 1922 में हैदराबाद भारत में हुआ था. उनकी कई किताबें प्रकाशित हुईं. उनकी शायरी में प्यार और रिश्तों का नया रंग देखने को मिलता है.
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बहारों का समां है और मैं हूं किसी का दास्तां है और मैं हूं वही बेताब अरमानों की दुनिया वही गम का धुआं है और मैं हूं.
गमे इमरोज का गिला क्यों हो हुस्ने फर्दा मेरी निगाह में है जिंदगानी का लुत्फ तो अज्मत सिर्फ तूफान की पनाह में है.
फूल किस बेदिली से हंसते हैं आप किस बेदिली से मिलते हैं मौत पहरों उदास रहती है हम अगर जिंदगी से मिलते हैं.
ये बात भी है कि तू भी नहीं है अब मेरा ये बात भी है कि तेरे सिवा नहीं कोई. अब जमाने से और क्या मांगूं दौलते गम बहुत जियादा है.
मंजिल पे नजर आई बहुत दूरी ए मंजिल बेसाख्ता आने लगे सब राह नुमा याद. जिंदगी तीरगी ए शब ही नहीं सुबह की रोशनी भी होती है.
हयाते नौ का फसाना सुनाएंगे हम लोग तलाश कर के बहारों को लाएंगे हम लोग वो गीत जिससे बहारों की रूह जाग उठे रबाबे जीस्त के तारों पे गाएंगे हम लोग.
दर्दे दिल कैफे अलम सोजे जिगर से पहले जिंदगी कुछ भी न थी तेरी नजर से पहले हाए ये बात उजालों को अभी क्या मालूम रात किस तरह से गुजरी है सहर से पहले.
आप से शिकवा ए बेदाद करूं या न करूं शौके पाबंद को आजाद करूं या न करूं आप हैं वक्त है फुर्सत है जरा ये कह दो अब बयां इश्क की रूदाद करूं या न करूं.