26 Jan 2024
अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में प्रभु श्रीराम को पांच वर्ष के बालक के रूप में विराजमान किया गया है. रामलला की मूर्ति को 'बालक राम' के नाम से जाना जाएगा.
'बालक राम' नामकरण इसलिए किया है क्योंकि भगवान राम पांच वर्ष के बच्चे के रूप में खड़ी मुद्रा में विराजित किए गए हैं. लेकिन इस प्रतिष्ठित मंदिर के गर्भगृह में विराजे प्रभु श्रीराम का नामकरण किसने किया?
दरअसल, रामलला मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में एक भव्य समारोह में की गई. कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने 7 महीने में रामलला की मूर्ति तैयार की.
तराशी गई 51 इंच की इस मूर्ति को 3 अरब साल पुरानी चट्टान से बनाया गया है. नीले रंग की कृष्णा शिल (काली शिस्ट) की खुदाई मैसूर के ही एचडी कोटे तालुका में जयापुरा होबली में गुज्जेगौदानपुरा से की गई थी.
रामलला की मूर्ति का 'बालकराम' नाम कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य महाराज जगदगुरु श्रीविजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल ने किया. जगद्गुरु श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती कांचीपुरम के 70वें जगद्गुरु पीठाधिपति हैं.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष और गीता परिवार के संस्थापक स्वामी गोविंद देव गिरि के मुताबिक, शंकराचार्य महाराज जगदगुरु श्री विजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल स्वयं हैदराबाद से अयोध्या के राममंदिर पधारे.
उन्होंने सारे विधि विधान को देखा. संतुष्ट हुए और भगवान श्रीराम के अत्यंत महत्वपूर्ण न्यास इत्यादि शंकराचार्य ने ही पूर्ण किए. बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मंत्रों की स्थापना ही न्यास होती है.
शंकराचार्य ने स्वयं भगवान श्रीराम के कानों में मंत्रापदेश भी किया. साथ ही भगवान श्रीराम का 'बालकराम' नामकरण किया.
स्वामी गोविंद देव गिरि ने बताया कि समस्त आचार्य पीठ पूज्य होने पर भी भगवान श्री शंकराचार्य स्वयं जहां पर रहे, उस कांची कामकोटि पीठ के मौजूदा शंकराचार्य का आना स्वयं आदि शंकराचार्य के आने के समान है.
'बालकराम' के आभूषण अंकुर आनंद के लखनऊ के हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स और परिधान दिल्ली स्थित डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने तैयार किए हैं.