अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में 22 जनवरी को धूमधाम से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई. इसे लेकर पूरे देश में भक्ति और उत्साह का माहौल है.
आइए इस मौके पर आपको भगवान राम की कुंडली और उसमें बनने वाले कुछ विशिष्ट योगों के बारे में बताते हैं.
भगवान राम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था. उनकी कुंडली कर्क लग्न, कर्क राशि और पुनर्वसु नक्षत्र की है.
सामान्यतः लोग उनकी कुंडली में सूर्य को दशम भाव में मानते हैं. लेकिन शोध और अध्ययन से पता चला है कि उनका सूर्य नवम भाव में है.
राम की कुंडली में बृहस्पति, शनि, मंगल और शुक्र उच्च राशि में है. श्रीराम की कुंडली पराक्रम, मर्यादा और दैवीय गुणों से युक्त है.
लेकिन इस कुंडली में सुख का अभाव है और संघर्ष काफी ज्यादा है. इसी कारण उन्हें एक राजा होते हुए भी 14 साल का वनवास काटना पड़ा था.
कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति से भगवान राम का जीवन इतना संघर्षशील रहा है. मातृ भाव में शनि की उपस्थिति से रिश्तों में बाधाएं आईं.
भाग्य यानी नवम भाव में शुक्र संग केतु का होना और उस पर राहु की दृष्टि के चलते राम ने राजा होते हुए भी एक संन्यासी सा जीवन व्यतीत किया.