05 मई यानी आज पूरे देश में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. साथ ही आज के दिन साल का पहला चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है.
रानी यशोधरा इक्ष्वाकु के वंशज और कोलिय वंश के राजा सुप्पाबुद्ध और रानी पामिता की पुत्री थी. माना जाता है कि यह बेहद सुंदर थी.
दूसरी तरफ, शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और महारानी मायादेवी भी लुम्बिनी वन में एक संतान को जन्म दे चुके थी, जिसका नाम सिद्धार्थ पड़ा.
ऐसा माना जाता है कि जब रानी मायादेवी के गर्भ में सिद्धार्थ थे तो उन्हें छह दांतों वाले एक सफेद हाथी का सपना आया था, जो कि उनके गर्भ में प्रवेश कर रहा है.
16 वर्ष की आयु में यशोधरा और सिद्धार्थ का विवाह हुआ था क्योंकि उस समय कोलिय और शाक्य वंश में ही शाही विवाह हो सकता था.
यशोधरा अपने पति के कामकाज और उनके मन की उलझनों का पूरा ख्याल रखती थीं. साथ ही दोनों दूसरों के दुखों को लेकर आपस में चर्चा भी करते थे.
यशोधरा को पता चल चुका था कि सिद्धार्थ शाही जीवन और सांसारिक जीवन को त्यागने के बारे में सोच रहे हैं.
वहीं, सिद्धार्थ इस बात से परेशान थे कि वह भी एक दिन बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु का शिकार हो जाएंगे.
शादी के 13 साल बाद यशोधरा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम राहुल था. सिद्धार्थ तब तक शाही जीवन त्यागने का फैसला कर चुके थे.
उसके बाद सिद्धार्थ शाही जीवन छोड़ आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े, जिसका यशोधरा को बहुत दुख हुआ था.
इसके बाद यशोधरा ने भी शाही जीवन त्याग साध्वी का जीवन व्यतीत किया और बगीचे में एक छोटी सी झोपड़ी डालकर रहने लगीं.
साथ ही अपने बेटे को पिता के जीवन और शिक्षाओं से सीख लेने को कहती थीं.
6 साल बाद ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात बुद्ध 100 साधु संतों के साथ वापिस लौटे. लेकिन, यशोधरा उनसे नहीं मिलने गई.
सबकी उम्मीदों के विपरीत यशोधरा अपने पति का अभिवादन करने महल के द्वार पर नहीं आई इसलिए यशोधरा ने उनका झोपड़ी में ही इंतजार किया.
उसके बाद गौतम बुद्ध उनसे मिलने गए और यशोधरा ने उनका स्वागत किया.
उसके बाद गौतम बुद्ध उन दोनों को अपने साथ आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर ले गए. जल्द ही यशोधरा भी मोक्ष पाने की राह पर चल पड़ी.
कहा जाता है कि इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए वह एक भिक्षुणी बन चुकी थीं इसलिए उन्हें गौतमी माना जाने लगा.
गौतमी को पता चला कि उन दोनों की मृत्यु भी एक ही दिन और एक ही समय होगी. इसलिए उसने स्वयं को बुद्ध से पहले त्यागने का फैसला लिया.
बुद्ध ने भी गौतमी के इस फैसले का सम्मान किया और दो साल बाद बुद्ध ने भी महानिर्वाण प्राप्त किया.