आज बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा रहा है. बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी उपलक्ष्य में बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है.
गौतम बुद्ध ने गृहस्थ जीवन छोड़कर संन्यास लिया था. आइए जानते हैं उनके गृहस्थ जीवन और उनकी पत्नी के बारे में और गौतम के संन्यास लेने के बाद की पूरी कहानी.
एक तरफ कोलिय वंश के राजा सुप्पाबुद्ध और रानी पामिता ने बेटी यशोधरा को जन्म दिया तो वहीं शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और महारानी मायादेवी के घर सिद्धार्थ का जन्म हुआ. जिनको आगे चलकर महात्मा बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा.
16 वर्ष की आयु में यशोधरा और सिद्धार्थ का विवाह हो गया था. यशोधरा सिद्धार्थ के हर सुख-दुख और जरूरतों का ख्याल रखती थीं.
यशोधरा को पता चल चुका था कि सिद्धार्थ एक संन्यासी जीवन की तरफ अग्रसित हो रहे हैं. वहीं, सिद्धार्थ भी परेशान थे कि उनकी मृत्यु एक दिन बुढ़ापे और बीमारी से हो जाएगी.
शादी के 13 साल बाद यशोधरा ने राहुल नाम की संतान को जन्म दिया और तब तक सिद्धार्थ शाही जीवन त्यागने का फैसला कर चुके थे.
उसके बाद सिद्धार्थ घर बार छोड़कर आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े. इसके बाद यशोधरा ने भी अपना शाही जीवन त्याग साध्वी का जीवन व्यतीत किया.
यशोधरा बगीचे में एक छोटी झोपड़ी डालकर वहीं रहने लगीं और अपने बेटे को पिता के जीवन और शिक्षाओं से सीख लेने को कहती थीं. यशोधरा को अंदाजा था कि गौतम बुद्ध अब उनके पति और राजा के तौर पर कभी वापस नहीं आएंगे लेकिन ये भरोसा था कि संन्यासी के तौर पर एक दिन वह जरूर मिलेंगे.
लगभग 6 साल बाद ज्ञान प्राप्ति के पश्चात बुद्ध 100 साधु संतों के साथ राजमहल वापिस लौटे. लेकिन, यशोधरा राजमहल के द्वार पर स्वागत करने के लिए नहीं गईं.
बल्कि, यशोधरा ने गौतम बुद्ध का इंतजार अपनी छोटी से झोपड़ी में ही किया. जिसके बाद गौतम बुद्ध उनसे मिलने गए.
यशोधरा ने गौतम बुद्ध से ज्ञान की राह पर ले चलने का अनुरोध किया. इसके बाद गौतम बुद्ध ने यशोधरा और राहुल को भी अपनी शरण में ले लिया. कहते हैं कि यशोधरा क्योंकि भिक्षुणी बन चुकी थी इसलिए उन्हें गौतमी कहा जाने लगा था.