दान देना हर धर्म और पवित्र धार्मिक ग्रंथों में सबसे नेक कार्यों में से एक बताया गया है.
प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य भी दान देने को सबसे उच्च और अच्छे कार्यों में से एक मानते हैं.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो इंसान दान देता है, वह कभी भी तंगहाल नहीं रहता है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इंसान को धर्म-कर्म के लिए दिल खोलकर खर्चा करना चाहिए.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धर्म के लिए दान देने में इंसान को कभी कंजूस नहीं होना चाहिए.
इसी वजह से चाणक्य सुझाव देते हैं कि इंसान को कभी मंदिर या अन्य तीर्थस्थल पर दान देने से नहीं कतराना चाहिए.
धार्मिक कार्यों के लिए दान देने के बाद इंसान को एक अलग ही स्तर की शांति प्राप्त होती है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इंसान को कभी गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद से भी पीछे नहीं हटना चाहिए.
आचार्य कहते हैं कि बेसहारा लोगों की मदद के बाद इंसान खुद को धार्मिक और सामाजिक नजरिए से सही महसूस करता है.