आचार्य चाणक्य भारत के सबसे महान विद्वान और अर्थशास्त्री माने जाते हैं. चाणक्य के नीति शास्त्र में जीवन की चुनौतियां और उनका हल उल्लेखित है.
चाणक्य नीति का एक श्लोक है- 'कान्तावियोग स्वजनापमानो ऋणस्य शेषः कुनृपस्य सेवा। दरिद्रभावो विषया सभा च विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्।।'
इस श्लोक में चाणक्य ने बताया कि कौन सी चीजें इंसान को बिना अग्नि के जलाती रहती हैं. आइए आपका अर्थ विस्तार से समझाते हैं.
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वियोग- चाणक्य के अनुसार, पति-पत्नी एक दूसरे से बिछड़ने के बाद वियोग में दिन-रात जलते रहते हैं. तन्हाई उन्हें कभी चैन नहीं लेने देती.
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अपमान- स्वजनों या अपने लोगों से मिला अपमान इंसान को अंदर से जला देता है. ऐसे लोग हमेशा मन में अपने दर्द को छिपाए रहते हैं.
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कर्ज- कंधों पर कर्ज का भार इंसान को कभी पनपने नहीं देता. ऐसे लोगों को हमेशा चिंता रहती है कि आखिरी उन्हें इस कर्ज से कब मुक्ति मिलेगी.
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दुष्ट मालिक की सेवा- बुरे इंसान का नौकर होना एक अभिषाप जैसा है. ऐसे लोगों की सेवा करने वाले लोगों को कभी मानसिक शांति नहीं मिलती है.
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धूर्तों की संगत- झूठ, छल, कपट करने वाले धूर्त लोगों की संगत भी इंसान को हमेशा जलाती रहती है. ऐसे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.