आचार्य चाणक्य ने ऐसे मां-बाप का वर्णन किया है, जिनकी वजह से उनके बच्चे हमेशा दुख भोगते हैं.
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ऐसे मां-बाप अपने बच्चे के लिए किसी शत्रु से कम नहीं होते हैं.
चाणक्य के अनुसार, वो माता-पिता बच्चों के शत्रु हैं, जिन्होंने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया नहीं हो.
चाणक्य के अनुसार, अनपढ़ बालक विद्वानों के समूह में शोभा नहीं पाता है. उसका सदैव तिरस्कार होता है.
विद्वानों के समूह में उसका अपमान उसी तरह होता है, जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है.
चाणक्य के अनुसार, मनुष्य की योनि में जन्म लेने से ही कोई बुद्धिमान नहीं हो जाता है. उसके लिए शिक्षा जरूरी है.
शक्ल-सूरत, आकार-प्रकार तो सभी मनुष्यों का एक जैसा होता है, फर्क सिर्फ उनके ज्ञान से ही नजर आता है.
जैसे सफेद हंसों में बैठा बगुला हंस नहीं बन सकता, उसी तरह अनपढ़ आदमी पढ़े-लिखों के बीच शोभा नहीं पा सकता है.
इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चों को ऐसी शिक्षा दें, जिससे वे समाज की शोभा बन सकें.