आचार्य चाणक्य ने ऐसे लोगों का वर्णन किया है, जो इंसान के रूप में गीदड़ समान हैं.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिन लोगों ने कभी दान नहीं दिया, वे गीदड़ समान होते हैं.
चाणक्य के अनुसार, जिन लोगों ने वेद-शास्त्रों से हमेशा द्वेष किया हो वे भी गीदड़ ही होते हैं.
चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य अपने माता-पिता और आचार्य की सेवा न करे वह भी इसी पशु जैसा है.
जिस आदमी ने आजीविका चलाने के लिए गलत तरह से पैसा कमाया हो, वह भी गीदड़ समान है.
चाणक्य के अनुसार, जिन लोगों ने कभी पैदल तीर्थयात्रा न की हो, उनका भी हाल कुछ ऐसा ही है.
चाणक्य कहते हैं कि ऐसा होने के बावजूद अगर कोई अभिमान से सिर उठाकर चलता है तो गीदड़ ही है.
आचार्य चाणक्य ने मनुष्य की इन हरकतों को बेहद नीच और निंदनीय बताया है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोग धरती पर बोझ समान है, इनके रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.