आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसा धन किसी काम का नहीं जिसमें सदाचार का त्याग करना पड़ जाए.
जो सदाचार को त्याग करके धन अर्जित करते हैं, उन्हें समाज में कभी भी सम्मान नहीं मिलता है.
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ऐसे लोगों को हमेशा मान-सम्मान की हानि उठानी पड़ जाती है.
वहीं वह धन भी किसी काम का नहीं, जो शत्रु की चापलूसी करके प्राप्त किया गया हो.
चाणक्य के अनुसार, ऐसा धन व्यक्ति को अंदर से हर समय आत्मग्लानि और भय महसूस कराता है.
अगर अपनों में यह भेद खुल जाए तो यही धन आपकी इज्जत को तार-तार कर देता है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इस वजह से इस तरह के धन का त्याग करना ही ठीक मार्ग है.
चाणक्य के अनुसार, जिस धन के कारण यातनाएं सहनी पड़ती हों, वह किस काम का.
ऐसे धन को कभी भी हाथ नहीं लगाना चाहिए, वरना दुख हमेशा सिर पर बना रहता है.