By Aajtak.in
चाणक्य को भारत का सबसे महान विद्वान और अर्थशास्त्री कहा जाता है. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में गुरु का महत्व समझाया है.
3 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है. आइए इस मौके पर जानते हैं कि चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में कैसे गुरु का त्याग करने को कहा है.
चाणक्य कहते हैं कि हर व्यक्ति का पहला गुरु उसके माता पिता, फिर विद्यालय में शिक्षक और फिर उसके अपने अनुभव होते हैं.
चाणक्य ने गुरु को गोविन्द तुल्य बताया गया है, क्योंकि गुरु के बिना शिष्य को ज्ञान मिलना असंभव है.
चाणक्य कहते हैं कि जितना एक शिष्य को अपने गुरु के लिए समर्पित होना चाहिए, उतना ही एक गुरु का कर्तव्य भी बनता है.
गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करता है. उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना सिखाता है. इसलिए गुरु बनाते समय एक बात हमेशा याद रखें.
चाणक्य कहते हैं, 'अगर गुरु के पास ही विद्या न हो तो वह शिष्य का उद्धार कैसे करेगा. ऐसे गुरु का त्याग करना ही उचित होता है.'
विद्याहीन गुरु से शिक्षा लेने वालों को न केवल धन हानि होती है, बल्कि उनका पूरे भविष्य ही खराब हो जाता है.