26 Nov 2024
AajTak.In
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शादियों का मौसम चल रहा है. चारों ओर शहनाइयों की गूंज सुनाई दे रही है. हर जगह वर-वधु अग्नि को साक्षी मानकर शादी के फेरे ले रहे हैं.
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सनातन धर्म में शादी-विवाह से जुड़े कई अनोखे रीति-रिवाज हैं. ऐसा ही एक अनोखा रिवाज है कि शादी में खुद मां अपने ही बेटे के फेरे नहीं देखती है.
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क्या वजह है कि शादी के सबसे खास पल में मां अपने बेटे के साथ नहीं होती है. क्यों वो दूसरे रिश्तेदारों की तरह अपने बेटे के फेरे नहीं देख पाती है?
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कहते हैं कि शादी में बेटे के फेरे न देखने की परंपरा मुगल काल से चली आ रही है. इससे पहले इस परंपरा का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है.
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ऐसा कहते हैं कि मुगल काल में जब कोई महिला अपने बेटे की बारात में जाती थी तो चोर-डकैत पीछे से घर का सफाया कर देते थे.
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इस डर से लोगों ने घर की देखभाल के लिए महिलाओं को बेटे की बारात में ले जाना ही बंद कर दिया. बस तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
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अब मॉडर्न जमाने में कई घरों में मां अपने बेटे की शादी में जाने लगी हैं. लेकिन अब भी उन्हें बेटे के फेरे देखने से इनकार किया जाता है.
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ऐसा भी कहते हैं कि शादी के बाद जब बेटा पहली बार पत्नी को घर लाता है तो उसके स्वागत के लिए द्वार पर घर की मुख्य महिला का होना जरूरी है.
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ताकि विधि विधान से उसका गृह प्रवेश किया जा सके. मां चावल से भरे एक कलश को बहू के सीधे पैर से गिरवाकर गृह प्रवेश कराती है.
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