हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है. फिर अगले दिन यानी चैत्र प्रतिपदा के दिन रंग-गुलाल उड़ते हैं
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पंचांग के अनुसार, इस बार होलिका दहन के दिन भद्रा का साया रहेगा. भद्रा के दौरान होलिका दहन करने की सख्त मनाही है.
ऐसी मान्यताएं हैं कि भद्रा के समय होलिका दहन करने से जीवन में समस्याएं आती हैं. इसलिए इस काल में होली कभी नहीं जलानी चाहिए.
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ऐसी मान्यताएं हैं कि भद्रा के समय होलिका दहन करने से जीवन में समस्याएं आती हैं. इसलिए इस काल में होली कभी नहीं जलानी चाहिए.
ऐसी मान्यताएं हैं कि भद्रा के समय होलिका दहन करने से जीवन में समस्याएं आती हैं. इसलिए इस काल में होली कभी नहीं जलानी चाहिए.
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ज्योतिषविदों के अनुसार, होलिका दहन भद्रा के बाद करना ही उचित होगा. 24 मार्च को होलिका दहन केा शुभ मुहूर्त रात 11.13 बजे से रात 12.27 बजे तक रहेगा.
यानी होलिका दहन के लिए आपको पूरा 1 घंटा 14 मिनट का समय मिलेगा. इस मुहूर्त में होलिका दहन करने से कोई दोष नहीं लगेगा और आपका जीवन खुशहाल बना रहेगा.
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होलिका दहन की शाम को पूजा के स्थान पर जाएं. यहां पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें. सबसे पहले होलिका को उपले से बनी माला अर्पित करें.
फिर रोली, अक्षत, फल, फूल, माला, हल्दी, मूंग, गुड़, गुलाल, रंग, सतनाजा, गेहूं की बालियां, गन्ना और चना आदि चढ़ाएं. कलावा लपेटते हुए 5-7 बार परिक्रमा करें.
होलिका दहन की अग्नि में जौ या अक्षत अर्पित करें. इसकी अग्नि में नई फसल को चढ़ाते हैं और भूनते हैं. भुने हुए अनाज को लोग घर लाने के बाद प्रसाद के रूप में बांटतें हैं.