कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतने के बाद युधिष्ठिर जब हस्तिनापुर के राजा बने तो उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ कराने का फैसला किया था.
इस यज्ञ को लेकर यधुष्ठिर ने कहा था, "जैसा यज्ञ मैंने किया है, वैसा ना ही अब तक किसी ने किया है और ना ही कोई कर सकेगा."
यधुष्ठिर की बात को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने उनका अभिमान तोड़ने का फैसला किया.
यज्ञ के समाप्त हो जाने के बाद एक सुनहरा नेवला वहां पहुंचा. जिसने बड़ी ही चतुराई से यधुष्ठिर का घमंड चूर-चूर कर दिया.
इसके बाद यधुष्ठिर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने सबसे क्षमा मांगी.
इसके बाद उन्होंने नेवले से पूछा, "आप मुझे बताइए मनुष्य को जवानी में कौन से ऐसे 4 काम कर लेने चाहिए जिसका फल उन्हें बुढ़ापे में मिलेगा."
नेवले ने यधुष्ठिर से कहा, 'जब भी इंसान धन और पद मिलता है तो वह उसका कर्ता स्वंय को मानने लगता है. जिसका नुकसान उसे आगे चलकर उठाना पड़ता है.'
इसके अलावा मनुष्य को जवानी में ही धन जोड़ना शुरू कर देना चाहिए. साथ ही मनुष्य को हर तरह के जीव के प्रति दया का भाव रखना चाहिए.
नेवले ने आगे बताया, 'मनुष्य को अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए क्योंकि इन्हीं के बदौलत बच्चे बुढ़ापे में अपने मां-बाप का ख्याल रखते हैं.'
नेवले ने अंत में बताया, जो मनुष्य अपनी जवानी के दिन आराम और आलस में बिताता है. उसका बुढ़ापा बड़ा ही कष्टदायी होता है.'