भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 7 जुलाई यानी कल से शुरू होने वाली है. इस रथ यात्रा का समापन 16 जुलाई को होगा. शास्त्रों में इसका विशेष महत्व बताया गया है.
इस यात्रा में जगन्नाथ, उनके भाई बलराम व बहन सुभद्रा को रथ में बैठाकर भव्य यात्रा निकाली जाती है. इन पवित्र रथों के मंडप सोने की झाड़ू से साफ किए जाते हैं.
जगन्नाथ का रथ नीम की लकड़ी से बनता है और इसमें 16 पहिए होते हैं. जब ये रथ तैयार हो जाता है तो पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है, जो इनकी पूजा करते हैं.
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एक परंपरा ये भी है कि राजा सोने की झाड़ू से रथ के मंडप को साफ करते हैं. इसके बाद रथ यात्रा के रास्तों को भी ऐसे ही साफ किया जाता है.
Photo: ANI (2019 में जगन्नाथ रथ यात्रा की एक तस्वीर)
इस परंपरा को 'छर पहनरा' कहा जाता है. भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ जिस रथ पर सवार होते हैं, उसमें कोई कील नहीं लगाई जाती है.
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जगन्नाथ यात्रा में कुल 3 रथ होते हैं, जिसमें सबसे ऊंचा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है. इस रथ का नाम 'नंदीघोष' होता है. इसकी ऊंचाई करीब 45.05 फुट होती है.
बलराम के रथ का नाम 'तालध्वज' होता है, जिसकी ऊंचाई 45 फुट होती है. सुभद्रा के रथ का नाम 'दर्प दलन' होता है और इसकी ऊंचाई 44.06 फुट होती है.
इन रथों को बनाने के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन शुरू होता है. सारी सामग्री जुटाने के बाद रथ को बनाने का कार्य अक्षय तृतीया से शुरू होता है.