By: Aaj Tak

जैन धर्म में क्या है संलेखना? जिसके जरिए चंद्रगुप्त मौर्य ने त्यागे थे प्राण


भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर हैं. इनका जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था. इस बार महावीर जयंती 4 अप्रैल को है.


सदियों से चले आ रहे जैन धर्म में कई अनोखी परंपराओं का उल्लेख मिलता है. इन्हीं परंपराओं में से एक है- संलेखना.


संलेखना शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- सत् और लेखन, जिसका मतलब होता है, अच्छाई का लेखा-जोखा करना.

क्या है संलेखना?


जैन धर्म में संलेखना शब्द का अर्थ व्रत के जरिए किसी व्यक्ति का प्राण त्यागना है. इसके तहत किसी व्यक्ति को स्वेच्छा से प्राण त्यागने पड़ते हैं.


जब बुढ़ापा, रोग, अकाल घेरने लगे और कोई निवारण न बचे तो व्यक्ति को धर्म का पालन करते हुए संलेखना के जरिए प्राण त्याग देने चाहिए.


बिना किसी दुख की अनुभूति के मृत्यु धारण करने की प्रक्रिया को संलेखना कहते हैं. इसका पालन करने वाला व्यक्ति पूर्णत: अन्न-जल त्याग देता है.


मौर्य वंश के संस्थापक और भारत के सबसे महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने संलेखना विधि के जरिए अपने प्राण त्यागे थे.

चन्द्रगुप्त मौर्य ने त्यागे थे प्राण


कर्नाटक स्थित श्रावणबेलगोला में उन्होंने अन्न-जल त्याग कर सल्लेखना का पालन किया था. उस वक्त उनके उत्तर स्थित साम्राज्य में अकाल पड़ा था.