न दफनाते हैं न जलाते हैं! जानें पारसी समुदाय के लोग कैसे करते हैं अंतिम संस्कार

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पारसी समुदाय के लोग साल में दो बार न्यू ईयर सेलिब्रेट करते हैं, जिसे नवरोज कहते हैं. इस दिन लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को शुभकामनाएं भेजते हैं.

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पारसियों का पहला नवरोज 20 मार्च 2024 को यानी आज है. जबकि साल का दूसरा नवरोज 16 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा.

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पारसी समुदाय का जिक्र होते ही कई लोगों के जेहन में इनके अंतिम संस्कार का ख्याल आता है. इनके अंतिम संस्कार का रिवाज दूसरे धर्मों से एकदम अलग है.

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जैसे हिंदुओं और सिखों में दाह संस्कार किया जाता है. इस्लाम, ईसाई धर्म में शव को दफनाया जाता है. वहीं, पारसियों में शवों को आकाश में सुपुर्द किया जाता है.

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पारसी लोग शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' में ले जाकर छोड़ देते हैं, जिसे दखमा कहा जाता है. इस अंतिम संस्कार को दोखमेनाशिनी कहा जाता है.

कैसे करते हैं अंतिम संस्कार?

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टावर ऑफ साइलेंस यानी दखमा एक गोलाकार ढांचा होता है, जिसकी चोटी पर शव को ले जाया जाता है. इसके बाद गिद्ध उस शव को ग्रहण कर लेते हैं.

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परंपरावादी पारसी लोग आज भी दोखमेनाशिनी के अलावा किसी दूसरे तरीके से शव का अंतिम संस्कार करने पर ऐतराज करते हैं.

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करीब 3000 साल से पारसी लोग इसी तरीके से मृतकों का अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं. पारसी समुदाय इसके पीछे एक खास वजह भी बताता है.

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पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि तत्व को बहुत पवित्र माना गया है. उनका कहना है कि शव का दाह संस्कार करने से अग्नि अपवित्र हो जाती है.

संस्कार चुनने की वजह

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शव जमीन में दफनाने से पृथ्वी दूषित हो जाती है. शव नदी में बहाने से जल तत्व प्रदूषित हो जाता है. इसलिए वो अपने रिवाज को ही सबसे बेहतर मानते हैं.

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