हिंदू धर्म में पितरों के श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि पितृपक्ष में पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
हालांकि पिंडदान या श्राद्ध कल्प क्या होता है? मौजूदा दौर के कई लोगों के लिए यह सवाल बहुत पेचीदा हो चुका है.
संस्कृति-संस्कारों के प्रति उपेक्षा के भाव और शास्त्रों की अज्ञानता ने हमें पौराणिक पद्धतियों से दूर कर दिया है.
इस साल पितृपक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक रहेगा. आइए जानते हैं कि इसमें पितरों के श्राद्ध के लिए कौन सी वस्तुएं जरूरी होती हैं.
रामायण के कई संस्करण हैं. इन्हीं में से एक संस्करण में रावण द्वारा सीता हरण का व्याख्यान थोड़ा अलग किया गया है.
इस रामायण के अनुसार, सीता हरण के लिए रावण जब ऋषि का वेश धारण कर कुटिया पहुंचा, तब राम सीता से पिता के श्राद्ध पर चर्चा कर रहे थे.
तभी रावण ने परिचय देते हुए कहा, 'मैंने मनुस्मृति, बृहस्पति के अर्थशास्त्र, मेगातिथि के न्याय शास्त्र और प्राचेस्त्र की श्राद्धकल्प पद्धति का अध्ययन किया है.'
श्राद्धकल्प पद्धति सुनते ही राम चौंक गए. उन्होंने फौरन ऋषि का वेश धारण किए रावण से श्राद्धकर्म में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के बारे में पूछा.
तब रावण ने अपने शास्त्रीय ज्ञान का परिचय देते हुए कहा, 'जो श्रद्धा से दिया जाए वही श्राद्ध है.' इसके बाद रावण ने कुछ चीजों का जिक्र किया.
रावण ने कहा, 'वनस्पतियों में दरभाकुश, औषधियों में तिल, शाकों में कलाय, मछलियों में महाशपर, पक्षियों में सार, पशुओं में गाय या स्वर्ण मृग.'
अगर श्राद्धकर्म में इन चीजों का प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही उसे पाकर परलोक में पितृ देवताओं की तरह रहेंगे और आशीर्वाद देंगे.