16 July 2024
AajTak.In
वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी है कि लोग धर्म, समुदाय से आगे बढ़कर उनके प्रवचन सुनते हैं और उन्हें जीवन में उतार लेते हैं.
कुछ दिन पहले प्रेमानंद जी से एक मुस्लिम फकीर मिलने उनके आश्रम पहुंचा था. वह मुस्लिम दरबार हजरत मौला अली में करीब 18 साल से सेवा कर रहा है.
फकीर ने बाबा से कहा, 'राधा-कृष्ण के प्रति आपका जो प्रेम है, उससे हम भी आपके मुरीद हो गए हैं. अल्लाह का शुक्रिया कि आप हमारी जिंदगी में आए.'
'अल्लाह से दुआ है कि वो आपको शिफा अता फरमाए. हमारी दुआ है कि आप जैसा दिव्य संत हमारे जीवन में एक बार जरूर आए.'
फकीर की बात सुन प्रेमानंद जी बोले, 'यहां आने के लिए आपका धन्यवाद. वास्तविक धर्म का स्वरूप इतना विस्तृत होना चाहिए कि रागद्वेष भाव मिट जाए.'
'यदि आप रामायण, भगवत गीता, गुरुवाणी या आपके अपने ग्रंथ का ईश्वर को साक्षी मानकर अध्ययन करेंगे तो मन को सुख देने वाली वाणी बन जाएगी.'
प्रेमानंद जी ने कहा, 'मुझे दृढ़ विश्वास है कि जिसका नाम आप लेते हैं, वो मेरे ही भगवान हैं. जिसे हम राम-कृष्ण-हरि बोलेते हैं, उसे आप कुछ और कहते हो.'
'वही वाहे गुरु है. वही परमेश्वर है. उपासक उन्हें अलग-अलग नामों से पुकार रहा है. बीच में जो रागद्वेष भाव है, वो हमारा निजी है.'
'ऐसे कई महापुरुष हुए हैं, जिनकी हम चरण वंदना आज भी करते हैं. वो कहीं भी हों, किसी भी जगह हों, जब ऊंचाई पर पहुंचते हैं तो सब एक जैसे नजर आते हैं.'
प्रेमानंद जी ने कहा, 'आप जैसे बड़े दिल वाले सहयोग देंगे तो इस जीवन में सामर्थ्य बना रहेगा कि जो ज्ञान गुरु से प्राप्त हुआ है, वो अधिकांश लोगों तक पहुंच पाएगा.'
'मेरी किडनी खराब है. शरीर मृत समान है. फिर भी आप जैसे संतों की दुआ से जीवित हूं और बोल रहा हूं. आपके यहां पधारने से मेरा मन बहुत प्रसन्न है.'