हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत ही खास महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है.
दरअसल, भगवान जगन्नाथ जी की मुख्य लीला भूमि ओडिशा की पुरी है, जिसको पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है.
भगवान जगन्नाथ जी का मतलब है कि ये स्वयं राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक हैं. यानी भगवान जगन्नाथ के अंदर भगवती राधा और भगवान कृष्ण दोनों ही संयुक्त रूप से विराजमान हैं.
ओडिशा की पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र यानी बलराम और सुभद्रा की काष्ठ की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं. जिनका निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था.
7 जुलाई यानी कल से भगवान जगन्नाथ की रथ शुरू होने वाली है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को इस रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है.
ओडिशा के पुरी में ये जगन्नाथ यात्रा इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार जनसामान्य के बीच जाते हैं. ये रथयात्रा दशमी तिथि को समाप्त होती है.
रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्रीबलराम होते हैं. श्री बलराम के पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र होता है. अंत में गरुण ध्वज पर या नंदीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं.
कल जगन्नाथ यात्रा कुछ खास संयोग बनने जा रहे हैं जिसमें पुष्य योग, रवि पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग भी बनने जा रहा है.