20 अप्रैल को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा. ये एक कंकणाकृति सूर्य ग्रहण होगा, जो भारत में नहीं दिखेगा. इसमें सूतक काल भी नहीं लगेगा.
क्या आप जानते हैं कि ग्रहण लगने के पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कहानी भी है. आइए आज आपको ये कहानी विस्तार से बताते हैं.
ग्रहण का वर्णन समुद्र मंथन की कथा में मिलता है. समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 रत्न बाहर आए थे, जिनमें से एक अमृत कलश भी था.
अमृत कलश को पाने के लिए देवों-असुरों में विवाद हो गया, जिसे सुलझाने के लिए विष्णु जी ने मोहिनी भेष धारण कर अमृत बांटने का निर्णय लिया.
उन्होंने देवों-असुरों को अलग-अलग पंक्ति में बैठाया और अमृत बांटना शुरू किया. तभी स्वर्भानु नाम का राक्षस चुपके से देवों की पंक्ति में बैठ गया.
स्वर्भानु सूर्य और चंद्रमा के बगल में बैठ गया. स्वर्भानु के हाथ जैसे ही अमृत आया, सूर्य-चंद्र ने उसे पहचान लिया और विष्णु जी को बता दिया.
इस पर भगवान विष्णु क्रोधित हो उठे और सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का गला काट दिया. हालांकि जब तक अमृत पान उसके गले से नीचे उतर चुका था.
स्वर्भानु के सिर वाले हिस्से को राहु और धड़ वाले हिस्से को केतु कहा जाने लगा. राहु और केतु ही चंद्र और सूर्य ग्रहण लगने की असल वजह हैं.
स्वर्भानु की इस दशा का कारण सूर्य और चंद्रमा थे, इसलिए उसके शरीर के दोनों हिस्से राहु और केतु सूर्य-चंद्रमा के दुश्मन बन गए.
यही कारण है कि प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा के दिन राहु-केतु क्रमश: सूर्य और चंद्रमा को निगल लेते हैं. इसे ही ग्रहण कहा जाता है.