वास्तु शास्त्र के अनुसार ब्रह्मा और इंद्र पूर्व दिशा के स्वामी होते हैं. पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा भी है.
घर के मालिक की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए घर का प्रवेश द्वार और खिड़की पूर्व दिशा में होना शुभ होता है.
घर के पूर्वी हिस्से में अधिक खाली जगह हो तो धन और वंश की वृद्धि होती है.
भूखंड पर बने भवन, कमरों, बरामदों में भी पूर्वी हिस्सा नीचा हो तो उस घर के लोग प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की करते हैं.
पूर्व दिशा में निर्मित मुख्य द्वार तथा अन्य द्वार भी केवल पूर्वमुखी हों तो शुभ परिणाम सामने आते हैं.
घर की पूर्व दिशा में दीवार जितनी कम ऊंची होगी उतना ही मकान मालिक को यश-प्रतिष्ठा, सम्मान प्राप्त होगा.
किसी भी प्रकार के निर्माण से पूर्व दिशा को बाधित न करें. जितना संभव हो इस दिशा को खुला छोड़ें.
पूर्व दिशा का क्षेत्रफल पश्चिम से कम या अधिक ऊंची उठी होने पर शत्रुओं की शक्ति बढ़ती है और विफलता मिल सकती है.
घर के सामने 'टी' नुमा रास्ता हो तो पूर्व मुखी मकान भी अशुभ परिणाम देता है.
वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर में 9 दिन तक अखंड रामायण का पाठ करवाएं.
घर के उत्तर-पूर्व कोने पर मिट्टी का कलश रखना ज्यादा बेहतर रहता है.