16 Oct 2024
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वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज से मिलने के लिए दूर-दूर से लोग उनके आश्रम पहुंचते हैं और उनसे अपने सवाल भी करते हैं.
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कुछ दिन पहले प्रेमानंद महाराज के पास एक व्यक्ति गया और उनसे पूछा, 'अगर व्यापार में किसी की देनदारी हो या किसी से अर्थ (पैसे) उधार लिए हों. और अभी हमारी वर्तमान की स्थिति देने लायक नहीं है तो क्या ये सही है.'
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प्रेमानंद महाराज ने कहा, 'आपको पता है कि देना है तो फौरन दे दो. दो दिन भूखे रह जाओ लेकिन दे दो'
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'ये हिसाब-किताब है. क्यों लिया, जब देने की सामर्थ्य नहीं थी तो?'
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'जब लिया है तो अब जैसे भी बने, मेहनत करो जैसे भी बने, आप अपने परिवार को चलाते हुए उसका कर्जा निपटाओ.'
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'नहीं निपटाओगे तो फिर आ कर के देना पड़ेगा. एक-एक हिसाब है.'
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'कर्जा पूरा देना, लेन-देन बराबर करना यहां से. इसलिए बहुत सोच समझ कर के कर्जा लेना चाहिए क्यों किसी से कर्जा लो उतना पैर पसारो जितनी लंबी चादर है.'
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'हमारे पास जितनी सुविधा हैं, हम उसके अनुसार कार्य करते हैं. हम दूसरों को दिखावे की तरफ क्यों बढ़ें?'
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'अब कर्जा लेकर मकान बना लिए, कर्जा लेके गाड़ी ले लिए, व्यापार कर लिए और घाटा लग गया. अब क्या करोगे?'
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'परेशान हो जाओगे. आप पैदल चलिए, साइकिल से चलिए, जितनी मर्यादा है, उस हिसाब से चलिए.'
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