श्रीकृष्ण ने दिया था अश्वत्थामा को मौत से भी ज्यादा खतरनाक श्राप, जानें क्यों

महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण चरित्र में से एक हैं अश्वत्थामा. पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, अश्वत्थामा आज भी धरती पर अमर हैं. 

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अश्वत्थामा कौन थे और उनको इतना खतरनाक श्राप क्यों मिला था.

अश्वत्थामा कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी के पुत्र थे. जन्म से अश्वत्थामा ब्राह्मण और कर्मों से क्षत्रिय थे. 

कहते हैं कि अश्वत्थामा का जन्म गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी के कई वर्षों की तपस्या के बाद हुआ था और उन्हें जन्म के साथ ही भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था. 

अश्वत्थामा के बारे में महत्वपूर्ण बात ये थी कि जन्म के साथ ही अश्वत्थामा के माथे पर एक खास तरह की मणि थी जिसकी वजह से उसे भूख, प्यास और थकान महसूस नहीं होती थी. उनकी शक्तियां किसी भी आम इंसान से बहुत अलग और ज्यादा थीं.

उस मणि के कारण अश्वत्थामा को अमरत्व का वरदान भी प्राप्त था. शास्त्रों के अनुसार, वो इन 7 चिरंजीवियों में से एक हैं- ऋषि व्यास, हनुमान जी, परशुराम जी, विभीषण, राजा बली और कृपाचार्य.

महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने अपने मित्र दुर्योधन का बदला लेने के लिए पांडवों को मारने का प्रण लिया जिसके कारण उसने गलती से पांडवों के 5 पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया था. अश्वत्थामा इस बात से भी परिचित था कि उसने ये हत्याएं करके पाप किया था.

जिसके बाद अश्वत्थामा अपने इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए ऋषि व्यास के आश्रम चले गए थे.

हालांकि, अश्वत्थामा को जब पता चला कि पांडव जीवित हैं और उसने गलती से उनके बेटों को मार दिया तो अश्वत्थामा ने दुर्योधन से की गई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए फिर से पांडवों को समाप्त के लिए उन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा.

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र के जवाब में हथियार चलाने के लिए कहा. हालांकि, ऋषि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया.  व्यास ने अर्जुन को अपना अस्त्र वापस लेने के लिए कहा लेकिन अश्वत्थामा अपने ब्रह्मस्त्र को वापस नहीं ले सकते थे. 

इसके बाद अश्वत्थामा ने उस ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की कोख में पल रहे बच्चे की तरफ छोड़ दिया.

अश्वत्थामा पांडवों के पूरे वंश को समाप्त करना चाहता था इसलिए उसने उत्तरा की कोख में पल रहे बच्चे पर प्रहार किया. हालांकि, श्रीकृष्ण ने उत्तरा के बच्चे की रक्षा की.

अश्वत्थामा के इस गुनाह के कारण श्रीकृष्ण ने उससे उसकी मणि छीन ली और उसे अनंतकाल तक दया, प्रेम, सहानुभूति और शांति के लिए अकेले भटकने का श्राप दे दिया.

श्रीकृष्ण का यह श्राप मौत से भी अधिक घातक साबित हुआ क्योंकि अश्वत्थामा जानता था कि वह अमर है और उसे कलियुग के अंत तक अपने पापों का बोझ उठाना पड़ेगा.