करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है.
मान्यता है कि इसे रखने से सुख-सौभाग्य मिलता है और दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रहता है.
इस व्रत को शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद खोलने की परंपरा है साथ ही ये भी मान्यता है कि करवाचौथ का चांद हमेशा छलनी से ही देखा जाता है.
व्रत कथा के अनुसार, एक बार किसी बहन को उसके भाइयों ने भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक दिखाकर भोजन करवा दिया.
इस तरह उसका व्रत भंग हो गया. इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवाचौथ आया तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हुई.
उस करवाचौथ पर कन्या ने हाथ में छलनी लेकर चांद के दर्शन किए थे.
छलनी का एक रहस्य यह भी है कि कोई छल से उनका व्रत भंग न कर दे, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है.
एक अन्य मान्यता है कि महिलाएं करवाचौथ के चांद की किरणों से अपने आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करती हैं.
छलनी से फिल्टर होकर आने वाली किरणें जीवन में खुशी का प्रतीक मानी जाती हैं.