मैसूर का दशहरा दुनियाभर में फेमस है. यहां का दशहरा 10 दिन तक चलता है और इस दौरान सारे शहर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजा दिया जाता है.
10 दिनों तक चलने वाला दशहरा का उत्सव चामुंडेश्वरी देवी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है.
छह शताब्दी पुराने इस उत्सव को वाडियार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वडियार ने दशहरे का नाम दिया.
इस उत्सव पर मैसूर महल को 90 हजार से अधिक बिजली के बल्बों तथा चामुंडी पहाड़ियों को 1.5 लाख से अधिक बिजली के बल्बों से सजाया जाता है.
जुलूस में सजे-धजे हाथी भी शामिल होते हैं. सुसज्जित हाथी इतने आकर्षक लगते हैं कि लोग इन पर फूलों की बारिश करते हैं.
विजयदशमी के जुलूस में सजे हाथी के ऊपर एक चामुंडेश्वरी देवी प्रतिमा के साथ साढ़े सात सौ किलो का 'स्वर्ण हौदा' रखा जाता है. जो कि लकड़ी और धातु से बना है.
तेज रोशनी में नहाया मैसूर महल, फूलों और पत्तियों से सजे चढ़ावे, सांस्कृतिक कार्यक्रम खेल-कूद यहां के दशहरे की ओर आकर्षित करती है.
विजयदशमी के पहले नवरात्रि के आखिरी दिन मैसूर के वर्तमान राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार देवी की पूजन के बाद जुलूस की शुरुआत करते हैं.
मैसूर में दशहरे के समय खूब रौनक लगती है. यहां 10 दिनों तक बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. साथ ही फूड मेला, वुमेन दशहरा जैसे कार्यक्रम भी होते हैं.
इस उत्सव के दौरान शास्त्रीय और लोकप्रिय नृत्य के साथ-साथ लोकगीत और संगीत का भी आयोजन किया जाता है.
इस जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड, डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं. यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होती है.