अभी कितनी दूरी बची है, वो देखकर ही हिम्मत डोलने लगती है. शरीर थकने लगता है. लेकिन साहस छूटता नहीं.
मौसम ने कर रखी थी हालत खराब. थोड़ी सी धूप निकली तो आंखें खुल गईं.
रास्ते की गंदगी और खच्चर की सवारी भी तोड़ देती शरीर को.
अपने बच्चे को बारिश से छिपाने के लिए रेनकोट और घोड़े से गिरने के लिए मजबूत पकड़.
सर पर बोझा कितना भी हो पर पुण्य कमाने के लिए मेहनत तो लगती ही है.
हवा हल्की होने पर सांस लेने में होती है दिक्कत. इसलिए मास्क लगाना भी फायदेमंद है.
ठंड, बारिश सबसे बचने की पूरी तैयारी.
बस थोड़ा और दूर है मंदिर...