हर रोज नई तकनीक आती है और इस रेस में खुद को बनाए रखने के लिए हम धड़ल्ले से अपने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बदल देते हैं.
लेकिन इस बात पर किसी का ध्यान तक नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब हमारे लिए कचरा बन जाते हैं तो ये कहां जाते हैं?
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब हम रिजेक्ट कर देते हैं तो ये ई-वेस्ट हो जाते हैं. 'ई-वेस्ट' 21वीं सदी के लिए उतना ही खतरनाक है जितना कि ग्लोबल वॉर्मिंग.
ई-वेस्ट का अगर सही तरीके से निस्तारण किया जाए तो यह पर्यावरण की सेहत और देश की अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज का काम कर सकता है.
ई-वेस्ट ऐसे वेस्ट इलेक्ट्रिकल उपकरण हैं जो पुराने हों, उनकी लाइफ खत्म हो चुकी हो या रिजेक्ट कर दिए गए हों.
इसमें बिजली और बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर समेत तमाम चीजें आती हैं.
ई-वेस्ट में आमतौर पर ऐसे पदार्थ होते हैं जो पर्यावरण के लिए खतरनाक होते हैं और मानव के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं.
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइज के निर्माण के लिए जिन मेटल और मिनरल की आवश्यकता होती है, भारत में ऐसे रेयर अर्थ मेटल्स और मिनरल्स की अत्यधिक कमी है.
इसलिए ई-वेस्ट में पहले से मौजूद इन दुर्लभ खनिजों की रीसाइकलिंग पर ध्यान देना और भी अधिक जरूरी हो जाता है.
ये तरीका इन मिनरल्स को धरती से खोदकर डिवाइसों के लिए प्रोसेस करने से आसान और सस्ता है.
ई-वेस्ट में इन रेयर और कीमती सामग्रियों की सही से रीसाइक्लिंग के जरिए पैसा और रोजगार बनाने की बड़ी संभावनाएं हैं. पूरी रिपोर्ट नीचे पढ़ें.